हूल प्रणाम :-
भरती स्वाधीनता संग्राम के संथाल क्रांति के जननेता सिद्धु - कानुन के अमर कण्ठ से उदरीय "हूल, हूल, हूल" का पवित्र मंत्र सम्पूर्ण संथाल परगना वासियों के हिर्दय में स्वतंत्रता की त्रिसना को इतना बढ़ा दिया कि वे एक क्षण भी स्वयं को रोक नहीं पाए,
संथाल हूल सम्राज्यवादी शक्तियों के विरुद्ध समाज के निचले पायदान पर खड़े वनवासियों का सशस्त्र क्रांति है, जिसके प्रारम्भिक परिणाम ने ब्रिटिश सरकार को अचंभित कर दिया था, 7- जुलाई 1855 को सिद्धु ने महेश दरोगा की हत्या कर दिया, कानुन ने घोषणा किया "हूल - हूल - हूल" (विद्रोह -विद्रोह - विद्रोह) दरोगा नहीं, हाकीम नहीं, आज से संथाल राज्य का शुभारंभ हुआ, उनके अन्दर क्षोभ और असंतोष इतना गम्भीर था कि बन्दुक की गोली की तरह निकल गई और देखते ही देखते सम्पूर्ण संथाल परगना में विद्रोह की आग धधकने लगी, जिसके दमन के लिए ब्रिटिश ने जिस निर्दयता और निष्ठुरता का परिचय दिया था, उसका उदाहरण नहीं मिलता है!!
तात्कालिकन ब्रिटिश सेनापति मेजर जांभस ने स्वयं स्वीकार किया था कि हमलोगों ने जो किया वह युद्ध नहीं नर हत्या था, उनके हिर्दय में स्वाधीनता के प्रति आकर्षण इतना प्रबल था कि वे किसी भी कीमत पर आत्मसमर्पण के लिए तैयार नहीं थे, घोर संग्राम के बाद सैकड़ों की संख्या में बन्दूक की गोली सीने पर खाकर अमरत्व को प्राप्त हुए, कानुन लड़ते - लड़ते युद्ध में शहीद हो गये, सिद्धु को भगनाडिहिर में फांसी दे दी गई, संथाली एकता का बन्धन इतना सुदृढ़ था कि युद्ध बंदी संथाली योद्धाओं से ब्रिटिश सरकार लाख प्रयास करके भी विद्रोह कालीन कोई भी तथ्य नहीं जान पाई, संथाल संगठन वास्तव में एक सुदृढ़ संगठन था इनके नेता पूर्ण सचेत थे कि एकता में तकनीक भी छिद्र न हो सके !
संथाल नेता सम्राज्यवादी शक्तियों के संबंध में बिल्कुल अनभिज्ञ थे, ऐसी बात नहीं है उनमें स्वतंत्र राजनीतिक चेतना विद्यमान थी, वे युद्ध के अंतिम दिनों में समझ चुके थे कि सशस्त्र संग्राम में वे ब्रिटिश सरकार का सामना नही कर सकते, बाद में "खजाना बन्द" आनंदोलन सहित अन्य आन्दोलनों के माध्यम से ब्रिटिश सरकार का विरोध करते रहे !
संथाल विद्रोह आंचलिक समस्याओं पर केन्दीय कर आरम्भ हुआ था, मगर इसका अर्थ यह नहीं है कि संथाल किसी विशेष अंचल के समस्या के समर्थक थे, संथाल राज्य की स्थापना का सपना कोरा घोषणा पत्र नहीं था, वह लौकिक क्षमता सम्पन्न नेतृत्व पर निर्भर था, संथाल समाज एक सुदृढ़ एकता के बन्धन में बंधे थे वह सिद्धु - कानुन के ईश्वरीय व अलौकिक क्षमता व नेतृत्व का परिणाम था, अखण्ड संथाल सभा की धारणा उनमें धर्म बोध से आया था, इस विचार के विकास में संथाल धर्मगुरुओ के चेतन प्रयास का महत्वपूर्ण योगदान था, वास्तव में धर्म के प्रभाव से ही संथाल हूल में आलोकित तीव्रता आई थी !
संथाल हूल सही अर्थों में धर्मगुरुओ के प्रेरणा से एक जन सशस्त्र क्रांति थी, जो सनातन पद्धति का अनुशारन कर ब्रिटिश सम्राज्य का जोरदार प्रतिवाद किया था, कपित करणों यह क्रांति अपने पूर्ण उद्देश्य को प्राप्त नहीं कर सकी पर भारती स्वाधीनता संग्राम के सफर में संथाल क्रांति मिल का पत्थर है !
हूल दिवस पर स्वाधीनता संग्राम के शहीद को शत् शत् नमन !!
अशोक कुमार
संपादक हूल एक्सप्रेस
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