जम्मू- कश्मीर पूनर्गठन अधिनियम - 2019

                                                           अशोक कुमार
                                                   प्रधान संपादक हूल एक्प्रेस

जम्मू -कश्मीर पूनर्गठन अधिनियम 2019 देश के आदरणीय गृहमंत्री श्री अमित शाह जी ने भारत के उच्च सदन राज्यसभा में 5- अगस्त 2019 को प्रस्तुत किया था, यह अधिनियम उसी दिन राज्यसभा से पारित कर दिया गया, अगले ही दिन यह अधिनियम लोकसभा से भी पारित हो गई
             इस अधिनियम में जम्मू -कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने और राज्य का पूनर्गठन दो केन्द्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख क्षेत्र के रूप में प्रस्तावित किया गया, जम्मू- कश्मीर क्षेत्र  में अपनी विधायका होगी जबकि लद्दाख बिना विधायका वाली केन्द्र शासित क्षेत्र होगा, महामहिम भारत के राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद इस अधिनियम के प्रावधान 31- अक्टूबर 2019 से भारत के प्रथम उपप्रधानमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल के जयन्ती के दिन से लागू किया गया, इस अधिनियम के प्रभाव में आने के बाद जम्मू- कश्मीर को अनुच्छेद 370 के तहत प्राप्त सारे विशेषाधिकार शून्य हो गया,
                इस धारा में ही उसके समाप्ति की व्यवस्था बताई है, धारा 370 का उप अनुच्छेद -3 बताता है कि पूर्ववर्ती प्रावधान में कुछ भी लिखा हो, राष्ट्रपति प्रकट सूचना द्वारा यह घोषित कर सकते हैं, कि यह धारा कुछ अपवादों या संशोधनों को छोड़ दिया जाये तो समाप्त की जा सकती है!
                  इस अनुच्छेद का एक परन्तुक (Proviso) भी है, वह कहता है, कि इस के लिये राज्य की संविधान सभा की मान्यता चाहिए, किन्तु अब राज्य की संविधान सभा ही अस्तित्व में नहीं है, 
जो व्यवस्था अस्तित्व में नहीं है वह कारगर कैसे हो सकती है ?
                             
                             धारा 370 भारत का संविधान का ही अंग है, यह धारा संविधान के 21 वें भाग में समाविष्ट है! Temporary Transitional and Special provisions
                  
                            धारा 370 के शीर्षक के शब्द है, जम्मू- कश्मीर के सम्बन्ध में अस्थायी प्रावधान Temporary provision with respect to the state of Jammu and Kashmir. अर्थात अनुच्छेद 370 जम्मू- कश्मीर को राज्य को स्वायत्तता प्रदान करता था, संविधान के 21 वें भाग में अनुच्छेद के बारे में परिचयात्मक बात कही गयी है, अस्थायी संक्रमण कालीन, विशेष प्रावधान, जम्मू- कश्मीर की संविधान सभा को इसके स्थापना के बाद, भारतीय संविधान के उन लेखों की सिफारिश करने का अधिकार दिया गया था जिन्हें राज्य में लागू किया जाना चाहिये या अनुच्छेद 370 को पुरी तरह से निरस्त करना चाहिये, बाद में जम्मू- कश्मीर संविधान सभा ने राज्य के संविधान का निर्माण किया किन्तु अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की सिफारिश किए बिना ही खुद को भंग कर दिया, इस लेख को भारतीय संविधान की एक स्थायी विशेषता माना गया है!

                    जम्मू- कश्मीर भारत का एकमात्र ऐसा राज्य है, जिसके मुख्यमंत्री को "वजीर ए आजम" अर्थात प्रधानमंत्री एवं राज्यपाल को 
"सदर ए रियासत " राष्ट्रपति पद नामो का तगमा प्राप्त था, जिसे अपना ध्वज फहराने का अधिकार था, भरतीय संविधान का अनुच्छेद 35(A) जम्मू- कश्मीर राज्य के विधान मण्डल को " स्थायी नागरिक " परिभाषित करने तथा नागरिकों को विशेषाधिकार प्रदान करने का अधिकार देता था, यह धारा भारतीय संविधान में जम्मू- कश्मीर सरकार की सहमति से राष्ट्रपति के आदेश पर जोड़ी गई थी, जो कि राष्ट्रपति द्वारा 14 मई 1954 को जारी किया गया था,अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू- कश्मीर राज्य को निम्नलिखित विशेषाधिकार प्राप्त
था :-

* धारा 370 के प्रावधानों के अनुसार भरतीय संसद को जम्मू- कश्मीर राज्य के बारे में रक्षा, संचार, एवं विदेश मामलों के विषय में कानून बनाने का अधिकार था, लेकिन किसी अन्य विषय से सम्बन्धित कानून को लागू करने करने के लिए केन्द्र को राज्य सरकार का अनुमोदन लेना आवश्यक था!

* विशेषाधिकार के कारण संविधान की धारा 356 जम्मू- कश्मीर पर लागू नहीं होती थी!

* इसी धारा के कारण देश के राष्ट्रपति के पास राज्य के संविधान को बर्खास्त करने का अधिकार नहीं था!

* शहरी भूमि कानून 1976 के तहत भारत के नागरिकों को विशेष अधिकार प्राप्त राज्यों के अलावा भारत में किसी भी राज्य में भूमि खरीदने का अधिकार है, लेकिन अनुच्छेद 370 के प्रावधानों के कारण शहरी भूमि कानून जम्मू- कश्मीर पर लागू नहीं होता था, भारत के अन्य राज्यों के निवासी जम्मू- कश्मीर में भूमि खरीद कर नहीं रह सकते थे !

* भारतीय संविधान की धारा 360 जिसके अन्तर्गत देश में वित्तीय आपातकाल लगाने का प्रावधान है, वह जम्मू- कश्मीर पर लागू नहीं होता था,

* देश के अन्य राज्यों के निवासियों को जम्मू- कश्मीर की यात्रा के लिए परमिट लेना अनिवार्य था, इसके अतिरिक्त भी धारा 370 के अनेकों संविधानिक जटिलतायें थी!

                   जम्मू- कश्मीर का भारत में विलय निस्संदेह अति आवश्यक था, किन्तु अनुच्छेद 370 के तहत राज्य को दिये गये विशेषाधिकार एक बड़ी भूल थी, तात्कालिक अनुच्छेद 370 का राजनीतिक महत्व चाहे जो भी रहा हो, लोक मान्यताओं में धारा 370 भारत के हिर्दय पर रखा हुआ एक पत्थर था, जिस को हटाने का साहस अजादी के 70 वर्षों किसी भी सरकार ने नहीं किया, और अलगाववादी इसी धारा के आड़ में वर्षों तक बार- बार देश को लहू लुहान करते रहे, आजादी के बाद इस धरा का सबसे अधिक दुर उपयोग 90 के दसक में हुआ, जब लूट, बलत्कार, हत्या के बाद लाखों कश्मीरी पंडितों को अपना घर छोड़कर भागना पड़ा था, उनके पलायन के अन्य कारणों में सबसे बड़ा कारण अनुच्छेद 370 का दुरूपयोग है, जम्मू- कश्मीर के अलगाववादियों का यदि आतंकवाद तलवार है तो धारा 370 उन का डाल था!

            पंडित नेहरू जी के समय से ही काग्रेंसी खेमे में अनुच्छेद 370 को लेकर कर विरोध होने लगा था, भारत के प्रथम कानून मंत्री संविधान निर्माता भारत रत्न बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर जी अनुच्छेद 370 के धुर विरोधी थे, उन्होंने इसका मसौदा ( ड्राफ्ट ) तैयार करने से साफ मना कर दिया था!
                             
अम्बेडकर जी के मना करने के बाद शेख़ अब्दुल्ला नेहरू जी के पास पहुंचा और पंडित नेहरू के निर्देश पर एन. गोपाल स्वामी अयंगर जी ने अनुच्छेद 370 का मसौदा तैयार किया था!



जनसंघ के स्थापक डा० श्यामा प्रसाद मुखर्जी  सम्पूर्ण जम्मू- कश्मीर
 को भारत का अभिन्न अंग मनते थे, उन्होंने अनुच्छेद 370 को निरस्त कराने लिए संघर्ष करते हुए अपने प्राणों की आहूति दे दी, वे जम्मू- कश्मीर के अलग झण्डा, अलग संविधान, "वजीर ए आजम" एवं "सदर ए रियासत" पदनामो का विरोध करते हुए कहा था कि एक देश में दो निशान, दो विधान, दो प्रधान को देश कभी भी शिकार  नहीं करेगा, अपने संसद के भाषण में उन्होंने अनुच्छेद 370 को समाप्त करने की जोरदार वकालत करते हुए कहा कि इससे देश छोटे - छोटे टुकड़े में बंट रहा है, अगस्त 1952 में जम्मू की विशाल रैली को संबोधित करते हुए अपना संकल्प व्यक्त करते हुए कहा था कि या तो मैं आपको भारतीय संविधान प्रप्त कराऊंगा या फिर इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए अपना जीवन बलिदान कर दुंगा, उन्होंने तात्कालिक नेहरू सरकार को चुनौती दी तथा अपने दृढ़ संकल्प निश्चय पर अटल रहे, वह अपने संकल्प को पुरा करने के लिए 1953 में बिना परमिट लिए जम्मू- कश्मीर की यात्रा पर निकल पड़े, वहा पहुचते ही उन्हें गिरफ्तार कर नज़रबंद कर दिया गया 23 जून 1953 को रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई!

डॉ० मुखर्जी के हत्या के बाद अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के लिए देश आन्दोलन मुंंखी होगा, जो सत्य आज तक खास लोगों तक सीमित थी, वह धीरे-धीरे आम नागरिकों को समझ में आ गई कि देश के साथ धोखा हुआ है, संसद के अन्दर और बाहर बवाल मच गया, देश के बदलते मिज़ाज को देखकर धारा 370 के समर्थन में खड़े नेताओं को अपने फैंसले पर पुनः विचार करने के लिए मजबूर हो गये और धीरे-धीरे अनुच्छेद 370 के प्रावधानों में संशोधन किया जाने लगा, जिसका आरम्भ सन् 1954 में हुआ!

                       सन् 1954 का एतिहासिक महत्व है, डॉ० मुखर्जी के हत्या के बाद जम्मू- कश्मीर के तात्कालिक वजीर ए आजम एवं पंडित नेहरू जी के अंतरंग मित्र शेख़ अब्दुल्ला को गिरफ्तार कर लिया गया, एवं जम्मू- कश्मीर विधानसभा द्वारा अनुच्छेद 370 पर निम्नलिखित संसोधन पारित किया गया :-

* 1954 में केन्द्रीय अखबारी, चुंगी, नागरिक उड्डयन और डाकता के कानून व नियम राज्य में लागू किया गया!

* 1958 में केन्द्रीय सेवा के आई. ए. एस तथा आई. पी.एस अधिकारियों की नियुक्ति राज्य में होने लगी, इसी के साथ ही सीएजी
 ( CAG ) के अधिकार भी जम्मू- कश्मीर में लागू किया गया!

* सन् 1959 में भारतीय जनगणना कानून जम्मू- कश्मीर में लागू हुआ!

* 1960 में सर्वोच्च न्यायालय को अधिकृत किया गया कि वह जम्मू- कश्मीर उच्च न्यायालय के निर्माण के विरुद्ध अपील को स्वीकार करें!

* सन् 1964 में संविधान के अनुच्छेद 356 एवं 357 जम्मू- कश्मीर पर लागू किया गया, इस अनुच्छेद के अनुसार राज्य में संवैधानिक व्यवस्था गड़बड़ा जाने पर राष्ट्रपति शासन लागू करने का अधिकार प्राप्त है!

* सन् 1965 में श्रमिक कल्याण, श्रमिक संगठन, समाजिक सुरक्षा तथा समाजिक बीमा सम्बंधित कई केन्द्रीय कानून जम्मू- कश्मीर पर लागू किया गया!

* 1966 में जम्मू- कश्मीर विधानसभा ने राज्य के संविधान में ऐतिहासिक संशोधन करते हुए वजीर ए आजम के स्थान पर मुख्यमंत्री तथा सदर ए रियासत के स्थान पर राज्यपाल पदनाम का प्रयोग करने कि स्वीकृति प्रदान किया, जम्मू- कश्मीर के सदर ए रियासत का चुनाव विधानसभा द्वारा होता था किन्तु अब राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा होने लगी, सन् 1966 में जम्मू- कश्मीर से प्रत्यक्ष  मतदान द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधियों को लोकसभा में भेजने का अधिकार प्राप्त हुआ!

* 1968 सर्वोच्च को चुनाव सम्बंधित मामलों पर जम्मू- कश्मीर उच्च न्यायालय के फैसले के विरुद्ध अपील सुनने का अधिकार प्राप्त हुआ,
 
*1971 में अनुच्छेद 226 के तहत विशिष्ट प्रकार के मामलों की सुनवाई करने का अधिकार न्यायालय को दिया गया!

* सन् 1986 में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 249 के प्रावधान जम्मू- कश्मीर पर लागू किया गया!

                    आंदोलन और विरोध का शिल-शाल वर्षों तक चलता रहा, इसी बीच एक के बाद एक अनुच्छेद 370 के प्रावधानों में कई संशोधन और सुधार किया गया किन्तु धारा 370 की नंगा तलवार जम्मू- कश्मीर राज्य पर लटकता रहा, उपरोक्त संशोधन से राज्य के शक्ति और स्थित में कोई खास परिवर्तन नहीं हुआ पत्थर बाज़ पत्थर वर्षाते रहे और पाकिस्तान के फंडिंग पर पलने वाले अलगाववादी मलाई चाटते रहे और केन्द्र सरकार मुख दर्शक बनी रही !



प्रकाशवीर शास्त्री ने 11- सितम्बर 1964 को अनुच्छेद 370 को हटाने के लिए एक प्रस्ताव संसद में पेश किया था, इस प्रस्ताव पर तात्कालिक गृहमंत्री श्री गुलामी लाल नन्दा 4 दिसम्बर को सरकार के तरफ से अधिकारिक वयान में एकतरफा रूख अपनाया जब सदस्यों ने उन का विरोध किया तो श्री नन्दा कहाँ कि यह मेरा सोचना है, अन्य सदस्यों को इस पर वाद-विवाद नहीं करना चाहिए, इस तरह श्री नन्दा ने अलोकतांत्रिक तरीके से पुरी चर्चा में अनुच्छेद 370 के विषय को टालते रहे, वे इतना ही कहं पाये कि विधेयक में कुछ कानूनी कमियाँ है, विधेयक के चर्चा में तात्कालिक केन्द्र सरकार की जम्मू- कश्मीर नीतियों में उनकी कमजोरी साफ़ दिखाई दे रहा था कि सरकार धारा 370 को हटाना नहीं चाहती है!

              जीवन के अन्तिम वर्षों पंडित जवाहरलाल नेहरू जी को कश्मीर नीति पर अपने गलतियों का ऐहसास अवश्य हुआ था, उनके द्वारा अगस्त 1962 में जम्मू- कश्मीर के नेता पंडित प्रेमनाथ बजाज को लिखें हुए पत्र से यह स्पष्ट होता है कि उनकी कल्पनाओं में भी यही था, कि कभी ना कभी धारा 370 समाप्त होगी!

                भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र भाई मोदी जी के विशाल राजनीति इच्छा शक्ति एवं कुशल नेतृत्व,एवं गृहमंत्री श्री अमित शाह तथा  रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह के सयुक्त प्रयास के परिणाम स्वरूप जम्मू- कश्मीर पूनर्गठन अधिनियम 2019 के प्रभाव में आने के बाद धारा 370 की सारी बाधा समाप्त हो गई, इस कार्य में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार श्री अजीत कुमार डोभाल जी का महत्वपूर्ण योगदान रहा है, स्वाधीन भारत के शहीद डा० श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी जम्मू- कश्मीर से धारा 370 को निरस्त करने का जो सपना देखा था वह साकार हुआ, राज्य तेजी से विकास के मार्ग पर लौट रहा है! ...............

            देश के गली- गली में एक नारा गुंज रहा है !
         यह तो पहली झांकी है, पी.ओ.के लेना बाकी है!
   
               




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