मुगल वस्तुकला एक झूठ !

मुगल वस्तुकला (आर्किटेक्ट ) एक ऐतिहासिक झूठ है, अरबी वास्तुकल का कभी कोई अस्तित्व नहीं था, वे इतने अशिक्षित और पिछड़े थे कि गर्मी से बचने के लिए  कच्ची ईंटों की झोंपड़ियों या ऊंट के नमदे के तंबुओं में रहते थे। अरब में वास्तुकला का कोई ग्रंथ नहीं मिलता, 

तर्क व मुगल निहायत बर्बर कबीले थे जिनके पास वास्तु कला तो छोड़िए सुसंस्कृत भाषा व संस्कृति ही नहीं थी, 


मुगल काल में  स्वंतत्र रूप से कोई भी इमारत बनाये जाने का प्रमाण नहीं मिलता। इतिहासकारों ने जीस इमारतों कि चर्चा पुस्तकों में किया है उसका कोई सटीक प्रमाण नहीं है,  वह  उस क्षेत्र के पूर्ववर्ती भवन थे जीस के बास्तबिक चिन्ह मिटाकर नया स्वरूप देने का प्रयास किया गया है। उदाहरण के लिए जेरुसलम में अल अक्सा मस्जिद हो या सीरिया की मस्जिद, वे चर्च या सिनेगॉग को तोड़कर ही बनाये गए है।

उज्बेकिस्तान में मुगलों के पुरखे तैमूर को अपना मकबरा बनवाने के लिए भारत से कारीगरों को बंदी बनाकर ले जाना पड़ा क्योंकि वहां कोई वास्तुकला जानता ही नहीं था। तैमूर का यह मकबरा आज भी 'सूर सादूल' अर्थात  ' सूर्य शार्दूल कहलाता है। और विडंबना देखिये उसके अनपढ जाहिल बर्बर वंशज ताजमहल के निर्माता होने का दम भरते हैं। 


जिन हिंदू राजाओं ने अजंता_एलोरा, खजुराहो जैसे वास्तुकला के नायाब नमूने दिये हैं, उनके स्वयं के महल कितने भव्य रहे होंगे ? 

आज वे भवन, महल व किले कहाँ हैं ? इसका उत्तर वामपंथी इतिहासकारों के पास नहीं है, आज जीन भवनों, मकबरों को 'मुगल वस्तुकला के उपहार के रूप में परोसा गया है, वास्तव में ये उन राजाओं के भवन और राज्य दरबार थे, जीनका कृति अजंता एलोरा और खजुराहो है, 

धर्मान्ध  मुस्लिम शासक जिन्हें हिन्दुओ से घोर घृणा थी, उन्हें ऐसी इमारतें बनाने की भला क्या जरूरत आन पड़ी जहां इस्लाम के सबसे गंदे माने जाने वाले पशु " सूअरों" की मूर्तिया इफरात से मौजूद हैं?

उदाहरण के तौर पर आप देख सकते हैं कि अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ के किले को जीता और फिर इसका नाम खिज्राबाद रख दिया। अगर राजपूत इसे पुनः नहीं जीतते होते तो आज पाठ्य पुस्तकों में इरफान हवीब और रोमिला थापर की किताबों में लिखा जाता 1303 ई. में अलाउद्दीन खिलजी ने मेवाड़ पर हमला किया और चित्तौड़ नामक 'पहाड़ी' पर मोर्चा जमाये राजपूतों को पराजित कर उस पहाड़ी पर एक 'दुर्ग' का निर्माण कराया और उसके चारो ओर एक शानदार शहर बसाकर उसे अपने बेटे के नाम पर  "खिज्राबाद" रखा।


भारत में यह घटना ना जाने कितनी बार और कितनी जगहों पर घटित हुई है।अग्रावन को 'आगरा' बन गया जिसको बसाने का श्रेय सिकंदर लोदी को दिया गया। विजयपुर सीकरी का नाम बदल कर' फतेहपुर सीकरी' रख दिया गया और बसाने का श्रेय अकबर को मिला। 


कोइल' को अलीगढ़, इंद्रप्रस्थ को 'दीनपनाह' और लालकोट को 'लाल किले' नाम दिया गया, मिहिरावली' में वराहमिहिर के अध्ययन हेतु बनाई गई 24 नक्षत्र निरीक्षण स्तंभ 'महरौली की कुव्वत उल इस्लाम व कुतुब मीनार' वामपंथी इतिहासकारों का सफेद झूठ है ।

ताजमहल और कुतुब मीनार बनाने की अक्ल व औकाद मुगलों या तुर्कों में नहीं थी। अगर होता तो उज्बेकिस्तान , तुर्क अफगान में भी मुगलों के पुरखों के बनाने गए ताजमहल, लालकिले, फतेहपुर सीकरी और कुतुब मीनार जैसे वस्तुकला का एक दो उदाहरण तो अवश्य मिलत

ताजमहल भी हमने बनाया और खजुराहो भी, मुगल आर्किटेक्ट मुगल वस्तुकला इतिहास का सबसे बड़ा घोटाल है वामपंथियों की कोरी कल्पना है, 

सत्य तो यह है, मुगल आर्किटेक्ट' नामक कोई चीज कभी था ही नहीं, 




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