लक्ष्मण रेखा


लक्ष्मण रेखा के बारे मेंआप सभी जानते हैं रामायण कथा के वनवास प्रसंग में इस पर विस्तार से प्रकार डाला गया है 

पर "लक्ष्मण रेखा " का असली नाम शायद  सभी को पता नहीं हो । लक्ष्मण रेखा वास्तव में एक शस्त्र विधा है जिस का नाम " सोमतिती  विद्या " है  साधना और संधान कर लक्ष्मण जी इस विद्या के इतने पारंगत हो गये थे कि कालांतर में " सोमतिती विद्या " लक्ष्मण रेखा के नाम से विख्यात हो गया



त्रेता युग अर्थात महाभारत युद्ध काल में भी इस विधा अन्तिम प्रयोग हुआ था श्रृंगी ऋषि कहते हैं कि योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण इस विद्या को जानने वाले अंतिम महापुरुष थे

उन्होंने  धर्मयुद्ध कुरुक्षेत्र के मैदान के चारों तरफ एक रेखा खींच दी थी ताकि युद्ध में प्रयोग किये जाने वाले भयंकर और विनाशकारी अस्त्र शस्त्रों के अग्नि व परमाणु  ताप युद्धक्षेत्र के बाहर जाकर दूसरे प्राणियों को क्षति न करे 

हमारे ऋषियों मुनियों ने सैकड़ों रहस्यमय विधा आग्नेयास्त्र, वरुणास्त्र, ब्रह्मास्त्र का खोज और संधान किया था जो आज भी विज्ञान के लिए आश्चर्य का विषय है  " सोमतिती विधा " उसका एक सटीक उदाहरण है 

 

सोमतिती_विद्या या लक्ष्मण_रेखा सम्पूर्ण रूप से विज्ञान पर अधारित अस्त्र है जिसका संधान अचूक था 


महर्षि श्रृंगी कहते हैं कि एक वेदमन्त्र है " सोमंब्रही वृत्तं रत: स्वाहा वेतु सम्भव ब्रहे वाचम प्रवाणम अग्नं ब्रहे रेत: अवस्ति "


यह वेदमंत्र कोड है उस सोमना कृतिक यंत्र का पृथ्वी और बृहस्पति के मध्य कहीं अंतरिक्ष में वह केंद्र है जहां यंत्र को स्थित किया जाता है,, वह यंत्र जल, वायु और अग्नि के परमाणुओं को अपने अंदर सोखता है,,  कोड को उल्टा कर देने पर एक विशेष प्रकार से अग्नि और विद्युत के परमाणुओं को वापस बाहर की तरफ धकेलता है,,

सोमंब्रहि वृत्तं रत: स्वाहा वेतु सम्भव ब्रहे वाचम प्रवाणम अग्नं ब्रहे रेत: अवस्ति--इस मंत्र को सिद्ध करने से उस सोमना कृतिक यंत्र में जिसने अग्नि के वायु के जल के परमाणु सोख लिए हैं उन परमाणुओं में फोरमैन आकाशीय विद्युत मिलाकर उसका पात बनाया जाता है,,फिर उस यंत्र को एक्टिवेट करें और उसकी मदद से एक लेजर बीम जैसी किरणों से उस रेखा को पृथ्वी पर गोलाकार खींच दें,,

उसके अंदर जो भी रहेगा वह सुरक्षित रहेगा, अगर बाहर से  कोई व्यक्ति या वस्तु बलपूर्वक घेरे के अंदर प्रवेश करना चाहेगा तो उसे अग्नि और विद्युत का ऐसा झटका लगेगा कि वह वहीं राख हो जायेगा

उस समय पृथ्वी पर चार गुरुकुलों में वह विद्या सिखाई जाती थी,,महर्षि विश्वामित्र के गुरुकुल में,,महर्षि वशिष्ठ के गुरुकुल में,, महर्षि भारद्वाज के यहां,, और उदालक गोत्र के आचार्य शिकामकेतु के गुरुकुल में महर्षि दधीचि,, महर्षि शांडिल्य भी इस विद्या को जानते थे,

रामायण के अनुसार महर्षि भारद्वाज ऋषिमुनियों के साथ भ्रमण करते हुए वशिष्ठ मुनि के आश्रम पहुंचे तो उन्होंने महर्षि वशिष्ठ से पूछा कि अयोध्या के राजकुमारों की शिक्षा दीक्षा कहाँ तक पहुंची है ?महर्षि वशिष्ठ ने कहा कि यह जो ब्रह्मचारी राम ने आग्नेयास्त्र, वरुणास्त्र एवं ब्रह्मास्त्र का संधान करना सीख लिया है ये महर्षि विश्वामित्र के द्वारा यह धनुर्वेद में पारंगत हुये है ,, यह जो ब्रह्मचारी लक्ष्मण  एक दुर्लभ सोमतिती विद्या सीख रहा है,

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मुगलों द्वारा हजारों ग्रन्थों के जलाए जाने और अंग्रेजों द्वारा महत्वपूर्ण ग्रन्थों को लूटकर ले जाने के कारण कितनी ही लोककल्याणकारी विधा भारत भूमि लुप्त हो गई जिसे हमारे

 यशस्वी ऋषि - मुनियों ने खोजी थी जो शेष बचा है उस अनमोल थाती को संरक्षण करना हमारा धार्मिक और समाजिक उत्तरदायी है प्रखर बुद्धि के युवाओं को अपने पुरखो धरोहर बचाये रखने के लिए जुट जाना चाहिए 

जय भवानी 






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