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हल्दीघाटी युद्ध का सच

 क्या आपने कभी पढ़ा है कि हल्दीघाटी के बाद अगले 10 साल में मेवाड़ में क्या हुआ..??? इतिहास से जो पन्ने हटा दिए गए हैं उन्हें वापस संकलित करना ही होगा क्यूंकि वही हिन्दू रेजिस्टेंस और शौर्य के प्रतीक हैं इतिहास में तो ये भी नहीं पढ़ाया गया है कि हल्दीघाटी युद्ध में जब महाराणा प्रताप ने कुंवर मानसिंह के हाथी पर जब प्रहार किया तो शाही फ़ौज पांच छह कोस दूर तक भाग गई थी और अकबर के आने की अफवाह से पुनः युद्ध में सम्मिलित हुई है  ये वाकया अबुल फज़ल की पुस्तक अकबरनामा में दर्ज है क्या हल्दीघाटी अलग से एक युद्ध था..या एक बड़े युद्ध की छोटी सी घटनाओं में से बस एक शुरूआती घटना.. महाराणा प्रताप को इतिहासकारों ने हल्दीघाटी तक ही सिमित करके मेवाड़ के इतिहास के साथ बहुत बड़ा अन्याय किया है वास्तविकता में हल्दीघाटी का युद्ध , महाराणा प्रताप और मुगलो के बीच हुए कई युद्धों की शुरुआत भर था मुग़ल न तो प्रताप को पकड़ सके और न ही मेवाड़ पर अधिपत्य जमा सके हल्दी घाटी के युद्ध के बाद महाराणा के पास सिर्फ 7000 सैनिक ही बचे थे..और कुछ ही समय में मुगलों का कुम्भलगढ़, गोगुंदा , उदयपुर और आसपास के ठिकानों पर अधिकार ह...

ज्योतिष चक्र और रत्न

ज्योतिष शास्त्र एक गहरा ज्ञान का सागर है। इसे सीखना आसान नहीं है। ज्योतिष शास्त्र को सीखने से पहले इस शास्त्र को समझना आवश्यक है। सामान्य भाषा में ज्योतिष शास्त्र वह विद्या है जीस में आकाश गंगा में ग्रहों, नक्षत्रों  की गति और दूरी इत्या‍दि का अध्ययन किया जाता है। ज्योतिष शास्त्र की व्युत्पत्ति 'ज्योतिषां सूर्यादि ग्रहाणां बोधकं शास्त्रम्‌' की गई है। हमें यह अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि ज्योतिष भाग्य या किस्मत बताने का कोई खेल-तमाशा नहीं है। यह विशुद्ध रूप से एक विज्ञान है। ज्योतिष शास्त्र वेद का अंग है। ज्योतिष शब्द की उत्पत्ति 'द्युत दीप्तों' धातु से हुई है। इसका अर्थ, अग्नि, प्रकाश व नक्षत्र होता है। शब्द कल्पद्रुम के अनुसार ज्योतिर्मय सूर्यादि ग्रहों की गति, ग्रहण इत्यादि को लेकर लिखे गए वेदांग शास्त्र का नाम ही ज्योतिष है। छः प्रकार के वेदांगों में ज्योतिष मयूर की शिखा व नाग की मणि के समान सर्वोपरी महत्व को धारण करते हुए मूर्धन्य स्थान को प्राप्त होता है। सायणाचार्य ने ऋग्वेद भाष्य भूमिका में लिखा है कि ज्योतिष का मुख्य प्रयोजन अनुष्ठेय यज्ञ के उचित काल का संशोधन कर...

चरण पादुका " खड़ाऊं "

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संस्कृतशब्द पादुका पद से व्युत्पन्न है । जिसका अर्थ 'पैर' है। यह साहित्यिक शब्द भारत की प्राचीन " चरण पादुका " को परिभाषित करने के लिए गढ़ी गई थी।  भारत में चरण पादुका या खड़ाऊ पहनने का प्रमाण सत्ययुग, द्वापर और त्रेता तीनों युगों मिलता है। श्री राम कथा " रामायण " में खड़ाऊं के धार्मिक महत्व को विस्तार से प्रकाशित किया गया है। खड़ाऊं का धार्मिक महत्व जितना अधिक है। उसका वैज्ञानिक महत्व भी कम नहीं है। आधुनिक शोध से यह प्रमाणित हो गया है कि खड़ाऊ पहनने से सूगर, प्रेशर जैसे असाध्य रोगों के निवारण में सहायक होता है। इसका प्रमाण वैदिक ग्रंथों में भी मिलता है। वैदिक काल में संत महात्मा ही नहीं समान्य जनमानस भी खड़ाऊ पहनते थे। पैरों में लकड़ी के खड़ाऊ पहनने के पीछे भी हमारे संतों की सोच पूर्णत: वैज्ञानिक थी।  गुरुत्वाकर्षण का जो सिद्धांत वैज्ञानिकों ने बाद में प्रतिपादित किया उसे हमारे ऋषि -मुनियों ने काफी पहले ही समझ लिया था। यजुर्वेद में कई जगह लकड़ी की पादुकाओं का भी उल्लेख मिलता है। शरीर में प्रवाहित हो रही विद्युत तरंगे गुरुत्वाकर्षण के कारण पृथ्वी द्वारा अवशोष...

लक्ष्मण रेखा

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लक्ष्मण रेखा के बारे मेंआप सभी जानते हैं रामायण कथा के वनवास प्रसंग में इस पर विस्तार से प्रकार डाला गया है  पर "लक्ष्मण रेखा " का असली नाम शायद  सभी को पता नहीं हो । लक्ष्मण रेखा वास्तव में एक शस्त्र विधा है जिस का नाम " सोमतिती  विद्या " है  साधना और संधान कर लक्ष्मण जी इस विद्या के इतने पारंगत हो गये थे कि कालांतर में " सोमतिती विद्या " लक्ष्मण रेखा के नाम से विख्यात हो गया त्रेता युग अर्थात महाभारत युद्ध काल में भी इस विधा अन्तिम प्रयोग हुआ था श्रृंगी ऋषि कहते हैं कि योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण इस विद्या को जानने वाले अंतिम महापुरुष थे उन्होंने  धर्मयुद्ध कुरुक्षेत्र के मैदान के चारों तरफ एक रेखा खींच दी थी ताकि युद्ध में प्रयोग किये जाने वाले भयंकर और विनाशकारी अस्त्र शस्त्रों के अग्नि व परमाणु  ताप युद्धक्षेत्र के बाहर जाकर दूसरे प्राणियों को क्षति न करे  हमारे ऋषियों मुनियों ने सैकड़ों रहस्यमय विधा आग्नेयास्त्र, वरुणास्त्र, ब्रह्मास्त्र का खोज और संधान किया था जो आज भी विज्ञान के लिए आश्चर्य का विषय है  " सोमतिती विधा " उसका एक सटीक उदाहर...

बेट द्वारिका में जेहादी साजिश

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 गुजरात हाई कोर्ट ने बेट द्वारिका के दो द्वीपों पर कब्जा जमाने के सुन्नी वक्फ बोर्ड के सपने को चकनाचूर कर दिया है। गुजरात में सुन्नी वक्फ बोर्ड ने भगवान श्रीकृष्ण की नगरी बेट द्वारिका के दो द्वीपों पर अपना दावा ठोका है। वक्फ बोर्ड ने अपने आवेदन में दावा किया है कि बेट द्वारका केदो द्वीपों पर स्वामित्व वक्फ बोर्ड का है।  गुजरात उच्च न्यायालय ने इस पर आश्चर्य जताते हुए पूछा कि श्री कृष्ण नगरी पर आप कैसे दावा कर सकते हैं। और न्यायालय ने उनके याचिका को भी खारिज कर दिया। इस समय गुजरात में इस विषय पर चर्चा का बाजार गर्म है। सोशल मीडिया के माध्यम से षड़यन्त्र का पर्दाफाश हुआ वरना पता ही नहीं चलता। कैसे पलायन होता है ? कैसे भूमि पर कब्जा होता है ? भूमि (लैंड ) जिहाद होता क्या है ? इसे समझने के लिए आप को बस बेट द्वारिका द्वीप के वर्तमान स्थित का संक्षिप्त  अध्यन करना होगा तो सब कुछ साफ जायेगा। ओखा नगरपालिका के अन्तर्गत आने वाला बेट द्वारिका कुछ वर्षों पहले तक हिन्दू बहुल क्षेत्र था । यहाँ का अधिकांश आबादी हिन्दूओं की थी  यहाँ आने - जाने का एकमात्र रास्ता जल मार्ग  है। बे...

लक्ष्य हीन सेना .... ।।

दुश्मन का पहचान करने में असफल, नेतृत्वहीन, लक्ष्य हीन सेना चाहें कितनी भी शक्तिशाली क्यों ना हो वह अंततः युद्ध हार जाती है, हिंदु जाती भी एक ऐसी ही सेना है जिसका कोई अपना लक्ष्य नहीं,शत्रु की पहचान करने कि रूचि नहीं, अपना कोई सेनापति नहीं, बात कड़वी है फिर भी मैं कहूँ गा, हिन्दूओं से ज्यादा राजनैतिक लक्ष्यहीन और दिशाहीन कोई दुसरी कौम नहीं, क्योंकि हिंदुओं के हिर्दय पटल पर  हिंदू साम्राज्य का कोई महत्वाकांक्षा नहीं है, सेकुलरिज्म के रोग से पिडित हिन्दू समाज बार - बार ठगे जाने के बाद भी हिन्दूओं के रक्त के प्यासे लोगों से भाईचारा निभाने में भी कोई लज्जा नहीं आती है । अंग्रेजों ने शोषण और शासन के लिए जो ढाचा बनाया था, उसे ही सजानें सवारने में सात दसक गवा दिया, लोभ और भोग के आकंठ में डूबा समाज कभी भी अपने गौरवशाली अतीत कि ओर झाका तक नहीं दुसरी ओर घात लगाये बैठे मुस्लिम और ईसाई मिशनरी सनातन संस्कृति को निगल जाना चाहते हैं,   कम्युनिस्ट हिन्दुस्तान में धर्मवहीन साम्यवादी व्यवस्था चाहते हैं, मुस्लिम  शरीयत कानून वाला इस्लामिक राष्ट्र चाहते हैं, और  ईसाई बाइबिल वाला  के...

श्री महथिन माई

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 बिहार के भोजपुर जिला अंतर्गत बिहिया का श्री महथिन माई मंदिर।  भोजपुर । भोजपुर जिला मुख्यालय से लगभग 30 किलोमीटर की दूर पर स्थित बिहिया में स्थापित है लोक आस्था की प्रतीक प्रसिद्ध महथिन माई मंदिर। महथिन माई के प्रति लोगों की गहरी आस्था है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि कोई यदि जीवन में गलत आचरण से धन प्राप्त करता है, धन और बल के बदौलत लोगों पर गलत तरीके से प्रभाव स्थापित करना चाहता है तो लोग एक ही बात कहते है कि यह महथिन माई की धरती है ,यहां न तो ऐसे लोगों की कभी चला है न चलेगा। इस मंदिर का कोई लिखित इतिहास तो नहीं है पर प्रचलित इतिहास के अनुसार एक जमाने में इस क्षेत्र में हैहव वंश का राजा रणपाल हुआ करता था जो अत्यंत दुराचारी था। उसके राज्य में उसके आदेशानुसार नव विवाहित कन्याओं का डोला ससुराल से पहले राजा के घर जाने का चलन था। महथिन माई जिनका प्राचीन नाम रागमति था पहली बहादुर महिला थी जिन्होंने इस डोला प्रथा का विरोध करते हुए राजा के आदेश को चुनौती दी। बताया जाता है कि राजा के सैनिकों और महथिन माई (रागमति )के सहायकों के बीच जम कर युद्ध हुआ। इस दौरान महथिन माई खुद ...